विष्णु शर्मा
ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के सिंहासन पर आने को 60 साल हो रहे थे. अंग्रेज पूरी दुनिया में उत्सव मना रहे थे. यही जश्न भारत के स्कूलों में भी होना था. लेकिन 9 साल के केशव का मन कुछ और कहता था. संघ के 100 साल के 100 कहानियों में इस बार उस घटना का वर्णन जब केशव का बालमन अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर उठा.
पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के बचपन की भी यही कहानी थी. उनका बचपन और किशोरावस्था भरपूर हंगामाखेज थी. स्कूल में पढ़ने की उम्र में नागपुर के सीताबर्डी किले पर लहराता यूनियन जैक (ब्रिटिश झंडा) ना जाने कितने बच्चों को तब रोज दिखता होगा, लेकिन केशव व उनके दोस्तों को वो अखर गया. उनको लगा कि वहां छत्रपति शिवाजी का भगवा ध्वज होना चाहिए.
फौरन योजना बनी कि किले तक सुरंग बनाई जाए और उस सुरंग में से वहां जाकर यूनियन जैक की जगह भगवा ध्वज फहरा दिया जाए. लेकिन सुरंग कहां से खोदी जाए? कई दिन के विचार-विमर्श के बाद टोली ने तय किया कि उनके सबसे प्रिय अध्यापक श्रीमान वाजे के घर से श्रीगणेश हो सकता है. किला वाजे के घर के पास था और इन बच्चों को उन्होंने अपना स्टडी रूम पढ़ने के लिए दे रखा था, यहां तक कि जब परिवार घर में नहीं होता था, तब भी बच्चे वहां पढ़ते थे.
बच्चे इंतजार करते कि कब परिवार बाहर जाए और कब वो खुदाई शुरू करें. एक दिन मौका मिला और खुदाई शुरू हो गई. कई दिन ये कार्यक्रम चला, अब तो वो उनके घर पर होते हुए भी कमरा बंद कर खुदाई करने लगे. श्रीमान वाजे को संदेह हुआ कि ये कमरा क्यों बंद कर लेते हैं.ऐसे में एक दिन उन्होंने कमरा खोलकर देख ही लिया कि एक सुरंग खोदी जा रही है, उनके होश ही उड़ गए. जाहिर है केशव व उनके दोस्तों को काफी सुनना पड़ा होगा.
