विश्व हिंदू परिषद की घोषणाः कारसेवकों की स्मृति में राम मंदिर परिसर में बनेगा स्मारक...विश्व हिंदू परिषद की घोषणाः कारसेवकों की स्मृति में राम मंदिर परिसर में बनेगा स्मारक...

विश्व हिंदू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार जी का कहना है कि राम मंदिर परिसर में कारसेवकों की स्मृति में एक सुंदर स्मारक का निर्माण कराया जाएगा..

उन्होंने कहा कि 500 वर्षों के संघर्ष के बाद मंदिर बनाने का संकल्प पूर्ण हुआ है। यह कारसेवकों के रक्त के चंदन की विजय है। आने वाले तीन महीने में राम मंदिर परिसर में उनकी स्मृति में एक सुंदर स्मारक बनेगा।

वाल्मीकि, निषाद राज और माता शबरी मंदिर का भी होगा निर्माण

आलोक कुमार ने कहा कि राम मंदिर के परकोटे में जो सप्त ऋषियों के मंदिर हैं, इनमें भगवान राम के गुरु, भक्त से लेकर मित्र तक विराजमान हैं। सप्त मंदिर में महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, महर्षि वाल्मीकि, देवी अहिल्या, निषादराज और माता शबरी के मंदिर बने हैं। भगवान राम के बाल्यकाल से लेकर, उनकी शिक्षा-दीक्षा, मार्गदर्शन व सहायता में इनका अहम योगदान रहा है। इसलिए उनके गौरव व गरिमा के अनुरूप राम मंदिर परिसर में ही महर्षि वाल्मीकि, निषाद राज, देवी अहिल्या व माता शबरी का विशाल मंदिर बनाया जायेगा।

विश्व हिंदू परिषद की घोषणाः कारसेवकों की स्मृति में राम मंदिर परिसर में बनेगा स्मारक...
विश्व हिंदू परिषद की घोषणाः कारसेवकों की स्मृति में राम मंदिर परिसर में बनेगा स्मारक…

जो स्वदेश के अनुकूल हो उस स्व का बोध पुनः प्राप्त करें

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 100 और विश्व हिन्दू परिषद के 61 वर्षों के सफर को एक उड़ान मिलनी चाहिए। वकील, डाक्टर, इंजीनियर, चार्टेड एकाउंटेंट ये अपने कामों को अंग्रेजी में करते हैं, उनका काम अंग्रेजी सिद्धान्तों पर होता है। पश्चिम की जूठन को हम प्रसाद मानकर स्वीकार करते हैं। अपने अन्तःकरण में झांक कर देखें। जो स्वदेश के अनुकूल हो, इस धरती के अनुकूल हो, उस स्व का बोध हम पुनः प्राप्त करें। हिन्दू को हिन्दू का जीवन जीना। अपने समाज व परिवार के साथ उन मूल्यों को धारण करना। दुनिया को आनंद व सुख का मार्ग दिखाना। इस ध्वज ने नीचे हमने यह भी संकल्प लिया है।

हिन्दुओं के सामर्थ्य से बना मंदिरअशोक सिंघल को याद करते हुए उन्होंने कहा कि जब लोगों के मन में संशय था कि हमें मंदिर प्राप्त होगा कि नहीं, उस समय अशोक सिंघल ने बड़ी धनराशि खर्च करके भूमि खरीदी। कुसुमपुर की पहाड़ी से पत्थर मंगाया, पत्थर तराशने का काम शुरू कराया। कार्यशाला में काम कभी बंद नहीं हुआ, उनको सफलता का विश्वास था। उन्हें सभी चुनौतियों से पार पाने का भरोसा था। भारत की धर्म परायण जनता के सामर्थ्य से, उसके पौरुष से अपनी शक्ति से हम मंदिर प्राप्त करेंगे, किसी की कृपा से नहीं। जिन लोगों ने कोर्ट में मुकदमा लड़ा उन्होंने इसे तप मान कर किया।

ध्वजारोहण के बारे में विहिप अध्यक्ष ने कहा कि कुछ चीजें ऐसी होती हैं उन्हें कहना कठिन होता है। अन्तःकरण में एक संतोष की अनुभूति, एक आनंद की अनुभूति। काम की पूर्णता धन्यता, भगवान के प्रति कृतज्ञता बहुत आनंद की अनुभूति । काम की पूर्ति के बाद जो निश्चतता होती है उसका भी अनुभव भी हमने किया।

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