मधुभाई का जीवन कार्यकर्ताओं के लिए दीपस्तम्भ के समान – दत्तात्रेय होसबाले जी

संघ के ज्येष्ठ प्रचारक मधुभाई कुलकर्णी जी की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा

छत्रपति संभाजीनगर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक मधुभाई (माधव) विनायक कुलकर्णी जी की स्मृति में एम.आई.टी. कॉलेज के ‘मंथन हॉल’ में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने मधुभाई के साथ अपने संस्मरणों को साझा किया। उन्होंने कहा कि मधुभाई के साथ मैंने अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख के रूप में साथ मिलकर काम किया। उनका स्वभाव अत्यंत अनुशासित था। मैं उन्हें संघ वृक्ष के परिपक्व फल के रूप में देखता हूँ। वे कार्यकर्ताओं को निरंतर प्रेरित करते रहे। वे केवल उपदेश नहीं देते थे, बल्कि अपने कार्यों से कार्यकर्ता भी बनाते थे। उन्होंने कहा कि उनका जीवन कार्यकर्ताओं के लिए दीपस्तम्भ के समान रहा।

श्रद्धांजलि सभा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह अतुल जी लिमये, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य भय्याजी जोशी, रामलालजी (अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख), सुरेशजी जाधव (पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत संघचालक), अनिलजी भालेराव (देवगिरी प्रांत संघचालक), मधुभाई के भतीजे विनय जी कुलकर्णी, सहित अनेक संघ स्वयंसेवक, विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य व्यक्ति और नागरिकों ने भाग लिया। परिचय संतोष जी पाठक ने मधुभाई के जीवन का विस्तृत परिचय दिया। सूत्र संचालन डॉ. यतीन्द्र अष्टपुत्रे ने किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का लिखित शोक संदेश पढ़ा गया। डॉ. स्वामी रामेश्वरानंद जी, प्रवीणजी तोगड़िया, राजाभाऊ भाले जी ने भी लिखित शोक संदेश भेजे थे।

मधुभाई के भतीजे विनय कुलकर्णी जी परिवार के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने कहा, “चूँकि चाचा जी पूर्णकालिक रूप से संघ के लिए समर्पित थे, इसलिए हमें उनके साथ ज्यादा समय नहीं मिल पाता था। लेकिन जब भी हम मिलते थे, वे संघ का विश्लेषण करते थे और हमें बताते थे। वे हमें बताते थे कि संघ ज्ञानेश्वरी के समान है। वे कहते थे कि संघ को जितना समझोगे, उतना ही वह प्रकट होगा। मधुभाई हमारे बड़े चाचा नरहर कुलकर्णी के कारण संघ की ओर आकर्षित हुए थे। वे कहते थे कि हमें साधना तो करनी ही चाहिए, लेकिन देश को एक जुझारू हिन्दू की जरूरत है।”

भय्याजी जोशी ने कहा कि “मधुभाई का स्वभाव इतना मधुर था कि कोई भी उनसे खुलकर बात कर सकता था। इसलिए न केवल स्वयंसेवकों से, बल्कि उनके परिवार के सदस्यों से भी गहरा नाता था। वे कहते थे कि समाज में खड़े रहना हमारी जिम्मेदारी है और समाज की विश्वसनीयता हमारे प्रति कहीं भी कम नहीं होने दी जाएगी। मधुभाई ने संघ को गहरे से समझा था, इसलिए वे इसे व्यवहार में लाने में सक्षम थे। वे तत्वज्ञान के बजाय कृति से निपटने पर जोर देते थे।”

अनिल जी भालेराव ने कहा, “मधुभाई मेरे माता-पिता से मिलने, प्राथमिक शिक्षा वर्ग जाने के लिए 80 किलोमीटर दूर मेरे गाँव आए थे। वे 30 किलोमीटर पैदल चले थे। उस दौरान कठिन परिस्थितियों में भी रहे थे। लोगों के बीच रहना और उनसे मिलना उनके लिए टॉनिक का काम करता था। डॉक्टर ने उन्हें यात्रा कम करने को कहा था। इसलिए मधुभाई ने स्कूटर से यात्रा करना शुरू कर दिया। आपातकाल के दौरान, उन्होंने अपना वेश बदल लिया था।” उन्होंने माधव सोनटक्के नाम अपना लिया था। उनका भेष ऐसा था कि पुलिस उन्हें कभी नहीं पहचान पाई।

मधुभाई कुलकर्णी का जीवन संघ कार्य और समाज कल्याण के लिए पूरी तरह समर्पित था। 1962 में वे संघ के प्रचारक बने। उन्होंने तालुका, जिला, विभाग, पुणे महानगर, गुजरात प्रांत और पश्चिम क्षेत्र प्रचारक जैसे कई स्तरों पर दायित्व निभाए। बाद में, अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख और 2015 तक कार्यकारी मंडल के सदस्य भी रहे। उनके कार्यकाल के दौरान पुणे में आयोजित तलजाई शिविर संघ कार्य के इतिहास में विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। नए कार्यकर्ताओं और समाज तक संघ के विचारों को पहुँचाने के लिए उन्होंने “अथातो संघजिज्ञासा” नामक पुस्तक लिखी, जिसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों तक वे शाखा, यात्राओं, संवाद और कार्यक्रमों में सक्रिय रहे।

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