संघ एक ऐसा संगठन है जो विशुद्ध भारत, भारतीयता, और भारतीयों के लिए कार्य करता है और राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र प्रथम के अतिरिक्त इसके केंद्र बिंदु में और कोई भी विचार नहीं है। इस दौरान कुछ कार्यकर्ताओं से सम्पर्क के बाद मेरे जीवन को एक नई सकारात्मक दिशा मिली है। यह एक दैवीय प्रवृत्ति है कि आप जब त्यागी, निस्वार्थी जनों से मिलते हैं तो एक विशिष्ट सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है।
लेफ्टिनेंट जनरल विष्णुकांत चतुर्वेदी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने विजयादशमी के पावन अवसर पर सेवा की एक शताब्दी को पूरा किया। मैं 31 मई, 2011 को भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हुआ। तब तक, मैंने संगठन के बारे में केवल समाचार पत्रों, पत्रिकाओं या कभी-कभार राजनीतिक चर्चाओं में ही सुना था। सेवानिवृत्ति के बाद मुझे संगठन के कुछ कार्यक्रमों में भाग लेने का अवसर मिला और इस दौरान मुझे अप्रत्याशित खुशी का अनुभव हुआ। पदाधिकारियों की आत्मीयता, सहजता का व्यवहार मुझे बहुत ही प्रभावित करता था। धीरे-धीरे, मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक की कार्यशैली में पूरी तरह से रम गया। जल्द ही मैं इस परिवार का एक छोटा सा हिस्सा बन गया।
‘व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण’ का यह वाक्य केवल वाक्य नहीं है, मैंने इन 12-13 वर्षों में इस पर कैसे अमल किया जाता है, स्वयं देखा है। देश में जब भी कोई समस्या आती है, तो उस पर संगठन में गहन विचार विमर्श किया जाता है, सामूहिक चर्चा होती है। समस्या के समाधान के विकल्पों पर सामूहिक विचार कर निर्णय लेने की पद्धति संघ की विशेषता है।
पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि संघ की स्थापना एक दैवीय संयोग है। भारत की पहचान, संस्कृति की निरंतरता, भाषा, विरासत, धरोहर और परंपराओं की रक्षा के लिए ईश्वर की प्रेरणा से ही इस संगठन की स्थापना हुई है, ऐसा प्रतीत होता है। अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा नहीं की जाती, तो हमारे भारत का भविष्य क्या होता आज शायद कोई नहीं बता सकता। केवल कल्पना की जा सकती है। आज यह संगठन वटवृक्ष रूप धारण कर चुका है। मुझे लगता है कि यह उन महान विभूतियों के संघर्ष, त्याग, तपस्या और बलिदान के कारण ही संभव हुआ है, जिन्होंने संघ की स्थापना और उसकी 100 वर्षों की यात्रा में अपना सर्वस्व समर्पण किया है। मैं स्वयं भी एक सैनिक हूं, और निःस्वार्थ सेवा, सेवा परमो धर्मः, बलिदान के अर्थों को भली-भांति समझता हूं। लेकिन जो राष्ट्र प्रेम, समाज सेवा और राष्ट्र प्रथम की भावना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक प्रदर्शित करते हैं, उसकी तुलना आज के दौर में संभव नहीं है। यह एक उत्कृष्ट, अद्वितीय और अनुकरणीय जीवन मूल्य हैं, जिनको संघ में प्रत्यक्ष भागीदारी से ही अनुभव किया जा सकता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विस्तार आज राष्ट्र के हर आवश्यक क्षेत्र – जनजाति और जनजातीय उत्थान, महिला सशक्तिकरण, जनसंख्या असुंतलन, राष्ट्रीय सुरक्षा, परिवार प्रबोधन, सामाजिक समरसता, विज्ञान और तकनीकी विकास, स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और आधुनिकीकरण, कृषि क्षेत्र में सुधार, प्रचार के विश्वसनीय माध्यम, विमर्श निर्माण, शिक्षा पद्धति का भारतीयकरण, नागरिक कर्तव्य, नक्सली गतिविधियां पर नियंत्रण पूर्वोत्तर राज्यों का विकास, भारतीय विरासत/परंपराओं की रक्षा, पारंपरिक भाषाओं का उत्थान, भारतीय खान-पान पर गर्व, न्याय व्यवस्था का भारतीयकरण, प्रशासनिक सुधार, रोजगार के अवसर, स्वावलंबन, पर्यावरण, आत्मनिर्भरता, इत्यादि सभी क्षेत्रों में हुआ है। इन क्षेत्रों में संघ ने बहुत ही गुणात्मक और प्रमाणिकता से काम करके दिखाया है। संघ आगे भी सतत रूप से इन क्षेत्रों में काम करने के लिए संकल्पबद्ध है। पंच परिवर्तन इसका प्रमाण है।
एक बहुत ही महत्वपूर्ण दृष्टिकोण की तरफ मैं सब का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। संघ में जब आप पूरी तरह से रम जाते हैं तो आप को स्वयं यह अनुभव होता है कि आप राष्ट्र के सबसे शिक्षित, अनुभवी और त्यागी महापुरुषों के बीच में हैं। यह सब अनुभव केवल पुस्तकों से न होकर, जमीन पर जाने से, लोगों से मिलकर, स्वयं संघ के कार्यकर्ताओं से चर्चा और सान्निध्य से प्राप्त हुआ है। सादा जीवन उच्च विचार को चरितार्थ करते हुए, यह संगठन और स्वयंसेवक कभी भी, किसी भी उपलब्धि का श्रेय लेने को मुखर नहीं रहते, श्रेय लेना उनके व्यक्तित्व में नहीं है। सेवा, सहायता, गरीब कल्याण, सामाजिक समरसता और राष्ट्र की एकता एवं अखंडता ही संघ कार्य का मूल मंत्र है।
संघ एक ऐसा संगठन है जो विशुद्ध भारत, भारतीयता, और भारतीयों के लिए कार्य करता है और राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र प्रथम के अतिरिक्त इसके केंद्र बिंदु में और कोई भी विचार नहीं है। इस दौरान कुछ कार्यकर्ताओं से सम्पर्क के बाद मेरे जीवन को एक नई सकारात्मक दिशा मिली है। यह एक दैवीय प्रवृत्ति है कि आप जब त्यागी, निस्वार्थी जनों से मिलते हैं तो एक विशिष्ट सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है। व्यक्ति अपने-आप सबल होकर भारत को यश और कीर्ति के शिखर पर ले जाने के मार्ग पर प्रशस्त होने लगते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में कुछ कतिपय भ्रांतियां हैं वो अवश्य ही संगठन से जुड़कर ही समाप्त हो सकती हैं। संघ से जुड़ाव आपको एक नवीन ऊर्जा से लबरेज करता है और यही ऊर्जा राष्ट्र और व्यक्ति के निर्माण में सार्थकता सुनिश्चित करती है।