प्रतिबंध हटने के बाद संघ और मजबूत होकर निकला. नेहरू और गुरु गोलवलकर की मुलाकात हो रही थी. पटेल उन्हें मिलने बुला रहे थे. इस घटनाक्रम से जो लोग आरएसएस के खत्म हो जाने का स्वपन देख रहे थे. उन्हें काफी ठेस पहुंचा. इसी माहौल में कुछ असामाजिक तत्वों ने सांगली के आस-पास गोलवलकर की हत्या की योजना बनाई. लेकिन नियति को तो कुछ और मंजूर था. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियोंकी कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
महीनों तक शाखाएं नहीं लगीं, कोई वर्ग नहीं लगा, बैठकें भी हुईं तो गुप्त रूप से और वो भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगे प्रतिबंध या गुरु गोलवलकर को जेल से छुड़ाने के लिए रणनीति बनाने पर केन्द्रित रहीं. सत्याग्रह की योजना बनाई जाती रही. बाहर आने के बाद गुरु गोलवलकर को संघ का रुका हुआ काम फिर से शुरू करना था. सबको एक बार फिर से उत्साह से भरना था. पूरे देश के स्वयंसेवक उनसे मिलने को उतावले थे, सो गुरु गोलवलकर ने इसके लिए पूरे भारत की यात्रा की योजना बनाई. माना जाता है कि गुरु गोलवलकर अपने जीवन में पूरे देश की 66 बार यात्राएं कर चुके थे. लेकिन ये शायद पहली यात्रा थी, जब उन्हें मराठी इलाकों मे ही मारने की साजिश रची जा रही थी.
