एक विराट संगठन का छठा महा अभियान

नरेन्द्र भदौरिया 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 100 वर्षों की यात्रा में कई घुमावदार अवरोधों को बड़े कौशल से पार किया है। इस यात्रा में पाँच बड़े अभियान बडी कुशलता से पूरे किये हैं। इन सभी को आज महा अभियान माना जा रहा है। इसी कड़ी को आगे जोड़ते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष में पञ्च परिवर्तन के उद्देश्य से पाँच सूत्रीय छठवां बड़ा महा अभियान 2025 की विजय दशमी से शुरू करने की तैयारी कर रहा है। यह अभियान भारतीय समाज को नया सबेरा दिखाने वाला सिद्ध होगा। इस अभियान के पाँच सूत्र हैं। यह सभी समाज के संकल्प बनें यही उद्देश्य है। इन्हें पँच परिवर्तन नाम मिला है। इनमें प्रथम है हिन्दु समाज में सामाजिक समरसता । दूसदा है कटुम्ब प्रबोधन, तीसरा है पर्यावरण संरक्षण, चौथा स्वदेशी जीवन शैली | शताब्दी वर्ष के लिए पांचवां सूत्र है नागरिक कर्तव्यों के प्रति समाज को जाग्रत करना। संघ के विरोधी भी कहते हैं कि सौ वर्षों में संघ कठिन राहों से सफलता पूर्वक अवरोधों को पार करते आगे बढ़ा है। अब ऐसी स्थिति में खड़ा है कि शताब्दियों से विश्रृंखलित भारतीय समाज को सशक्त क्षमता वाला आदर्श समाज बना सके। संघ कहता रहा है कि भारत का मूल सनातन संस्कृति को समर्पित समाज बंटा तो देश को बाँटने वाले सफल होते रहेंगे। भारतीय समाज को बहका कर बाँटने का कुचक्र चलाने वालों के लिए आर. एस. एस. बहुत कठिन चुनौती है। संघ ने 100 वर्षों की अपनी यात्रा में इस बात को मिथक सिद्ध कर दिया है कि भारत का हिन्दु समाज अपनी जड़ों से कटता जा रहा है। भारत में हिन्दुओं के विरोधियों का गुमान है कि सनातन संस्कृति अब प्रासंगिक नहीं रह गयी । हिन्दु समाज के रीति रिवाज मान्यताएं और नैतिक सिद्धान्तों के बन्धन ढीले पड़ते जा रहे हैं। ऐसे लोग यह भी कहते हैं कि हिन्दुओं की प्रतिरोधक क्षमता कुन्द पड़ चुकी है। क्योंकि हिन्दु निजी स्वार्थ की सीमाएं बहुत मुश्किल से लाँघते हैं। हिन्दु समाज आत्ममुग्धता में जीता है।

हिन्दुओं को सदा संरक्षण की कमी खटकती रहती है। कुछ समूहों को छोड़कर कोई शक्ति समग्र रूप से हिन्दु समाज का चिन्तन करने की दक्षता का निर्माण नहीं कर सकी। 

हिन्दु समाज की इन्हीं दुर्बलताओं का उत्तर है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ । दुर्बलता की इन बातों की अनदेखी संघ ने कभी नहीं की। आर एस एस की स्थापना विजय दशमी के दिन 27 सितम्बर 1925 को नागपुर में हुई थी। सूत्रधार बने थे डॉक्टर केशव बलीराम हेडगेवार । जो स्वतंत्रता के लिए देश में चल रहे आन्दोलनों से जुड़े थे। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में उनकी भागीदारी थी। साथ ही क्रान्तिकारी संगठनों के साथ उनके गहरे सम्बन्ध थे, स्वयं भी सक्रिय रहे।। डॉक्टर हेडगेवार के संगठन कौशल के प्रति कांग्रेस और क्रान्तिकारियों के सभी प्रमुख नेताओं को पूरा भरोसा था। सभी उनसे सहमत थे। एक दिन डॉ. हेडगेवार ने मोहनदास गाँधी से कहा- बापू देश तो अब स्वतन्त्र होकर रहेगा। तनिक विचार कीजिए कि स्वतन्त्र भारत की रीति नीति क्या होगी। क्या भारत को अपने मूल स्वरुप में लौटाने के लिए कोई योजना बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगीभारत को सनातन संस्कृति की धारा में लौटाने के लिए पूरा रोडमैप तैयार नहीं किया गया तो नया भारत कहीं भटकाया जा सकता है। वास्तविक नीति के अभाव में नयी सरकार के रथ के अश्व बहक सकते हैं। डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार से बापू ने कहा था आपकी बात तो पते की है । पर अभी यह चिन्तन करने की जल्दी नहीं दिखानी चाहिए । नये भारत का सूरज उगने दीजिए तभी सब कुछ तय हो जाएगा। समय ने सिद्ध कर दिया कि डॉक्टर हेडगेवार की बात बहुत महत्वपूर्ण थी। गाँधी का यह चिन्तन सही नहीं था कि बाद में दिशा तय कर लेंगे। स्वतन्त्रता मिलते ही बाजी गाँधी के हाथ से फिसल गयी। जवाहर लाल नेहरु ने गाँधी जी को पक्ष में लेकर देश की बागडोर लपक ली। नेहरु ने सनातन संस्कृति से दुराव की नीति अपनायी। नेहरु इस्लाम और ईसाइयत को सनातन संस्कृति की तुलना में अग्रेसर मानने वाले थे। नेहरु प्रारम्भ से ही पश्चिमी जीवन शैली के पोषक नेता थे। हिन्दु चिन्तन से चिढ़ते थे। पश्चिमी जीवन शैली और चिन्तन पर गर्व की अनुभूति करते थे। नेहरु स्वयं को हिन्दु कहने पर लज्जित अनुभव करते थे डाक्टर हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से जिस संगठन का तन्त्र खड़ा किया उसका मूल मन्त्र जन- जन से सम्पर्क, सेवा और समाज में 

,जागरण का सतत अभियान चलाना रहा है। संघ ने देशव्यापी स्वरुप बनाने की अपनी यात्रा में अब तक पाँच महा अभियान चलाये हैं। इनसे संघ की राष्ट्र व्यापी स्वीकार्यता सिद्ध हुई है संघ रह रह कर उफान पैदा करने वाला प्रवाह नहीं है। संघ ने हर 

दिन पावन की शैली अपना कर विराट स्वरुप खड़ा किया। इसके लिए महा अभियान की कड़ियाँ जोड़ी गयीं। इससे बड़ी महत्ता मिली। संघ ने पाँच महा अभियानों ने देश की दशा और दिशा ठीक की। फिर भी मजहबी उन्माद और ईसाई मिशनरियों के साथ देश में कम्युनिस्ट चिन्तन धारा का उबाल बड़ी चुनौती खड़ा करता रहा है। शताब्दी वर्ष 2025 का अद्वितीय महा अभियान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जगह कोई और संगठन होता तो सौ वर्षों की उपलब्धियां दर्शाने के लिए उतावलेपन में क्या करता । बहुत बड़ी रैली करके शक्ति प्रदर्शन करता । अपने नेतृत्व के गुणगान गाने में करोड़ों रुपये व्यय करता। जो सो सब कहता और् कहता। जिसका उद्देश्य केवल इतना होता कि हमसे बड़ा कोई नहीं। पर इससे क्या होता ? वस्तुतः लोग इतना भर कहते कि चलो, इस या उस पार्टी और नेता के भी पंख निकल आये हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रखर नेतृत्व ने बड़ा संयत और दूरदर्शी निर्णय किया। देश भर में कहीं कोई बड़ी रैली या यात्रा का रेला नहीं, प्रचण्डता दर्शाने वाला कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं और देश के सिवाय किसी का महिमा गान नहीं होगा । इस अप्रत्याशित निर्णय से सभी चकित रह गये । भारत में 06 लाख 49 हजार 481 गाँव हैं। भारत में 6614 क्षेत्र पंचायतें हैं। जिन्हें विकास खण्ड भी कहते हैं। भारत में जिलों की संख्या797 है। देश के 28 राज्यों 

में 752 जिले हैं। जबकि 08 केन्द्र शासित राज्यों में 45 जिले हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने संगठन के कार्य विस्तार की दृष्टि से स्वयं अपनी इकाइयां तय की हैं। गाँव, मण्डल, खण्ड़, जिला, प्रान्त, क्षेत्र मुख्य सांगठनिक संरचना का तन्त्र है। शताब्दी वर्ष 2025 का महा अभियान ग्राम, मण्डल, खण्ड़, जिला केंन्द्रों से प्रान्त, क्षेत्र और सम्पूर्ण देश तक पहुँचाया जाना है। करोड़ों कार्यकर्ताओं , विस्तारकों, प्रचारकों की तपश्चर्या का यह सबसे विराट अभियान है। इस अभियान का तात्पर्य केवल यह नहीं है कि स्वयंसेवक इन्हें अपनाएँगे। अपितु समाज को सचेत करके इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जाग्रत करेंगे। इस महा अभियान के अन्तर्गत पाँच सूत्र संघ ने सुनिश्चित किये हैं। पहला सामाजिक समरसता, दूसरा कुटुम्ब प्रबोधन, तीसरा पर्यावरण, चौथा स्वदेशी जीवन शैली, पांचवां संकल्प है नागरिक कर्तव्यों के प्रति सजगता । 

(1) सामाजिक समरसता 

शताब्दी वर्ष 2025 के अपूर्व अभियान के लिए पञ्च प्रण सबसे पहला सूत्र है । सामाजिक समरसता। इस प्रण की पूर्ति से आर. एस. एस. की बड़ी अपेक्षा जुड़ी है। संघ चाहता है कि भारत का मूल हिन्दु समाज समरसता की जीवन शैली अपनाते हुए विकास यात्रा पर आगे बढ़े। हिन्दुओं के मध्य सामाजिक विषमता के सारे मिथक ध्वस्त हों। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सामाजिक समरसता का पहला प्रण या कहें संकल्प कार्यकर्ताओं को थमाया गया है। कार्यकर्ता इस प्रण से स्वयं बंधे हैं। विभेद और असमानता की बातों को संघ के सभी निष्ठावान लोग बहुत पहले पीछे छोड़ आये हैं। अब यही कोटि कोटि संकल्पवान कार्यकर्ता गांवों शहरी बस्तियों तक घर -घर जन -जन तक समरस समाज की अलख जगाने जाएंगे। किसी को यह विचित्र लग सकता है। पर संघ की यह शैली निर्विवादित है। सम्पर्क की साधना से ही संघ को विराटता और दक्षता की सिद्धि मिली है। संघ ने निश्चय कर लिया है कि अब और प्रतीक्षा न की जाय। हिन्दु समाज के किसी व्यक्ति की सहिष्णुता और धीरज की परीक्षा न ली जाय। किसी को यह नैतिक अधिकार नहीं है कि दूसरे से विभेद करे। गाँवों बस्तियों से लेकर सभी जगह जल, धार्मिक स्थल, श्मशान तक सभी की समान सहभागिता बनी रहे। संघ मानता है कि संवाद और सम्पर्क के अभाव से दूरियां बढ़ती रहीं। लोग देखते रहे । जिसका जो दायित्व था उसका भान भुला दिया। सब जागें और मिलन के अधूरे संकल्प को पूरा करें। 

(2) कुटुम्ब प्रबोधन 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि परिवार राष्ट्र संवर्धन की महत्वपूर्ण कड़ी है। भारत में ऋषियों विज्ञजनों द्वारा प्रतिपादित सनातन संस्कृति को परिवार संस्था द्वारा पोषित किया गया। संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने सभी स्वयंसेवकों को जिन पाँच संकल्पनाओं से जोड़ा है उनमें कुटुम्ब प्रबोधन भी सम्मिलित है। संघ इस विषय पर बहुत समय से समाज का ध्यान आकृष्ट करता आ रहा है। स्वयं भागवत जी का कहना है कि सनातन संस्कृति के सिद्धान्तों को आदि काल से भारतीय परिवारों 

ने अपनाया । परिवार संस्था इससे पुष्ट होकर राष्ट्र के संवर्धन की कड़ी बन गयी । यह विचार नया नहीं है। स्वस्थ संस्कार सम्पन्न समाज का निर्माण परिवार करते हैं। सुव्यवस्थित, सशक्त परिवार ही पुष्ट समाज के आधार होते हैं। कुटुम्ब व्यवस्था के चलते सदा राष्ट्र बलवान बनता है। यह सन्देश सनातन संस्कृति का है। संघ 2025 के विजय दशमी उत्सव के साथ पूरे वर्ष भारत के जन जन तक इस विचार को पहुँचाएगा। प्रबोधन का अर्थ जाग्रत करने से है। किसी सत्य की ओर सचेष्ट करने को प्रबोधन कहते हैं। भारत में सामाजिक व्यवस्था सदा सुदृढ रही है। इस व्यवस्था को अनिवार्य मानते हुए समाज को जाग्रत करने की संकल्पना संघ की है। समाज सचेत होगा तो परिवार कुटुम्ब सशक्त होंगे। जन जन की जागृति से इस व्यवस्था में आने वाले रोड़े हट जाएंगे। यह बदलते परिवेश के लिए भी अनिवार्य और उपयोगी है। सभी कुटुम्बी जन दूरस्थ स्थानों पर रहते हुए अपने पारिवारिक सूत्रों में गुम्फित रह कर सशक्त बने रह सकते हैं। यही चेतना जगाने को संघ उद्यत है। संघ के विचारकों का कहना है कि भारत की समाजिक संरचना का विवेचन करने वाले विज्ञ जनों का यह निष्कर्ष सही है कि मूल्यों में गिरावट आने से परिवार और समाज को कई तरह के दबावों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। संघ ने 2016 में भी पूरे वर्ष कुटुम्ब प्रबोधन पर ध्यान आकृष्ट किया था। जाग्रति का अभियान चलाकर सामाजिक चेतना को पुष्ट करना होगा। (3) पर्यावरण संवर्धन पर्यावरण संवर्धन कोई नयी संकल्पना नहीं है। फिर संघ ने इसे अपने पाँच प्रणों में स्थान क्यों दिया । यह प्रश्न अनावश्यक है। संघ एक सामाजिम संगठन है। ऐसी सभी बातों का संज्ञान संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक लेता है जो इस धरती और आकाश से जुड़ी हैं। पर्यावरण मानव ही नहीं समस्त सृष्टि से जुड़ा दायित्व है। धरती, जल, वायु, वन और समस्त जीव, पशु पक्षी वह हर अवयव जो सृष्टि का अंग है उसके प्रति सचेष्ट रहना मनुष्य का कर्तव्य है। मनुष्यता की परिभाषा में यह दायित्व भी सम्मिलित हैं। सृष्टि की सभी चीजों के उपयोग की होड़ मची तो मनुष्य ने जाने क्या क्या नष्ट कर डाला। संघ के स्वयंसेवक पर्यावरण संवर्धन की चेतना को जगाने के लिए मुखर होने के साथ स्वयं को सम्बद्ध करेंगे। शताब्दी वर्ष में इस प्रण को निभाएंगे। मनुष्य का स्वभाव है कि जब कभी संकल्प को अपने प्रण से जोड़ लेता है तो सारे तर्क वितर्क समाप्त हो जाते हैं। तब कर्तव्य पथ स्पष्ट दिखने लगता है। यह जागरण संघ के समस्त स्वयंसेवक समाज से मिलकर शताब्दी वर्ष में करेंगे ।

(४) नागरिक कर्तव्य 

समाज में रहना एक नैतिक अनुबन्ध से जुड़ा है। एक स्वस्थ नागरिक व्यवस्था हर व्यक्ति के दायित्व बोध से प्राप्त की जा सकती है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में यह बात और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। स्वछन्द रहना स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार को बिगाड़ता है। जिस तरह किसी परिवार का कोई सदस्य यदि समस्त मर्यादाएं भंग करने पर उतर जाये तो पूरा कुटुम्ब त्रस्त हो जाता है उसी तरह समाज को स्वच्छन्दता डसती है। नागरिक कर्तव्य सभी के आचरण और जीवन शैली का अंग बनने चाहिए। समाज की जागरूकता से नागरिक व्यवस्थाएं सुदृढ होती हैं। तनिक सोचिये कि गाँव नगर बस्ती का कोई सदस्य जब कभी बाहर निकले मार्ग पर चलने के नियमों का पालन करे तो कितना अच्छा लगेगा। हर व्यक्ति स्वच्छता की अनिवार्यता से स्वयं को जोड़कर व्यवहार करें, स्वयं की सुविधा के लिए किसी को कष्ट पहुंचाने से बचे तो कैसा लगेगा। ऐसा नहीं कि लोगों को नागरिक कर्तव्यों की जानकारी नहीं होती। बस मन का आग्रह सुदृढ नहीं होता। इसके प्रति सचेत करने से बात बनेगी। 

(५) स्वदेशी जीवन शैली 

स्वदेशी जीवन शैली अपनाने का आग्रह कोई नया विषय नहीं है। जब संसार के अन्य भूभागों में विकास का सूर्य ठीक से उगा भी नहीं था तब भारत समुन्नत था। विज्ञान तकनीक, व्यापार, कृषि, उद्यम हर क्षेत्र में अग्रणी था। संसार के लोग चमत्कृत थे कि भारत ने हर क्षेत्र में इतनी उन्नति कैसे कर ली। सभी भारतीय वस्तुओं को देखकर चकित होते थे। इसी आकर्षण ने व्यापार को जन्म दिया। भारतीय वस्तुएं दूरस्थ देशों तक पहुँचने लगीं। भारत की उन्नति को तभी ग्रहण भी लगा । व्यापारियों के साथ लुटेरे आक्रान्ता भी दौड़ पड़े। उन सारी परिस्थितियों को भारत ने सहा। उससे उबर कर देश फिर खड़ा है। भारत ज्ञान विज्ञान तकनीक में उन्नत हुआ तो कई देशों की दृष्टि वक्री होने लगी है। वह चाहते हैं कि भारत केवल एक बाजार बना रहे। यदि यह देश तकनीक और विभिन्न उत्पादों को स्वयं बढाने में सफल हो जाएगा तो उनके काम का नहीं रहेगा। इसीलिए वह रोड़े अटकाते हैं। पर भारत उनकी चालों से परिचित है। भारत के 140 करोड़ नागरिको में जिस दिन स्वदेशी जीवन शैली का भाव जाग उठेगा भारत के महाशक्ति बनने के सारे अवरोध हट जाएंगे। स्वदेशी जीवन शैली का अर्थ केवल स्वदेशी उत्पादों की ग्राह्यता भर नहीं है। यह भी एक सोपान है। इसके साथ अपनी संस्कृति, सभ्यता, संस्कारों को जीवन पद्धति में सम्मिलित करना उद्देश्य होगा तब राष्ट्र की शक्ति को संसार पहचानेगा। आखिर हम हैं कौन। हमारी पहिचान किन संस्कारों से होती है। कैसे आचरण से हम पहचाने जाते रहे है । हमारा जीवन क्यों पवित्र माना जाता था। भारतीयता हमारी मुस्कान, हमारे शील, हमारे ज्ञान और सरलता सहजता से झलकनी चाहिए। हमारे पुरखे खाद्य अखाद्य, धान्य कुधान्य का भेद बता चुके हैं। मन की शान्ति के महात्म्य को हमें दूसरों से कभी सीखना नहीं पड़ा । तन मन दोनों के पुष्ट रहने, पुण्य का भाव बना रहने, उत्पीड़न नहीं करने और उत्पीड़न सहन भी नहीं करने की मानसिकता की महत्ता हम सब जानते हैं। हमें पता है सज्जन शक्तियों को दुष्ट आसुरी शक्तियां घेरती हैं। भारत आसुरी वृत्ति से मुक्त नहीं है । इसीलिए संघ कहता है संगठित रहो, शुद्ध आचरण से बंधकर चलो। शौर्य के सुबल को धारण किये रहो । देव शक्तियों की यही प्रेरणा रही है। को कभी नहीं ऐसे मंत्रों को कभी भूलना नहीं चाहिए। भारत के समस्त घटक राष्ट्र प्रथम के संकल्प से जुड़े रहें साथ ही पाँच सूत्रों को सदा सुमिरन में बनाये रहें। यही उद्देश्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का है। संघ के सदस्य जगाने निकलेंगे । देश का जन मानस इन संकल्पों को अपनाएगा । इसी पुनीत धारणा को संघ ने मंत्र माना है। इस माह अभियान का यही प्राण तत्व है। लेखक नरेन्द्र भदौरिया अध्यक्ष विशब संवाद केन्द्र लखनऊ 3/243 A विपुल खण्ड़ 

गोमतीनगर लखनऊ 226प10 

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