संघ स्वयंसेवकों के भाव बल और जीवन बल से चलता है – डॉ. मोहन भागवत जीसंघ स्वयंसेवकों के भाव बल और जीवन बल से चलता है – डॉ. मोहन भागवत जी

जयपुर, 16 नवंबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने ज्ञान गंगा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘…और यह जीवन समर्पित’ का विमोचन किया। कार्यक्रम का आयोजन पाथेय कण संस्थान के नारद सभागार में किया गया। यह पुस्तक राजस्थान के दिवंगत 24 प्रचारकों की जीवन गाथा का संकलन है।

इस अवसर पर सरसंघचालक जी ने कहा कि स्वयंसेवकों के भाव बल और जीवन बल से ही संघ चलता है। मानसिकता से हर स्वंयसेवक प्रचारक ही हो जाता है। संघ की यही जीवन शक्ति है। संघ यानी हम स्वयंसेवक हैं। संघ यानी स्वयंसेवकों का जीवन और उनका भाव बल है। आज संघ बढ़ गया है। कार्य की दृष्टि से अनुकूलताएं और सुविधाएं भी बढ़ी हैं, परंतु इसमें बहुत सारे नुकसान भी हैं। हमें वैसा ही रहना है जैसा हम विरोध और उपेक्षा के समय थे, उसी भाव बल से संघ आगे बढ़ेगा।

उन्होंने कहा कि संघ ऐसे ही समझ में नहीं आता है। इसे समझने के लिए प्रत्यक्ष अनुभूति की आवश्यकता होती है, जो संघ में प्रत्यक्ष आने के बाद ही प्राप्त हो सकती है। कई लोगों ने संघ की स्पर्धा में संघ जैसी शाखाएं चलाने का उपक्रम किया। लेकिन पंद्रह दिन से ज्यादा किसी की शाखा नहीं चली। हमारी सौ साल से चल रही है और बढ़ भी रही है। क्योंकि संघ स्वंयसेवकों के भाव बल और जीवन बल पर चलता है।

मोहन भागवत जी ने कहा कि आज संघ का काम चर्चा और समाज के स्नेह का विषय बना हुआ है। संघ के स्वयंसेवकों और प्रचारकों ने क्या-क्या किया है, इसके डंके बज रहे हैं। सौ साल पहले कौन कल्पना कर सकता था कि ऐसे ही शाखा चलाकर राष्ट्र का कुछ होने वाला है? लोग तो कहते ही थे कि हवा में डंडे घुमा रहे हैं। ये क्या राष्ट्र की सुरक्षा करेंगे? लेकिन आज संघ शताब्दी वर्ष मना रहा है और समाज में संघ की स्वीकार्यता बढ़ी है।

उन्होंने प्रचारकों और वरिष्ठ स्वयंसेवकों के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘…और यह जीवन समर्पित’ का उल्लेख करते हुए कहा कि यह पुस्तक केवल गौरव की भावना नहीं जगाती, बल्कि कठिन रास्ते पर चलने की प्रेरणा भी देती है। स्वयंसेवकों का आह्वान किया कि वे इस परंपरा को न केवल पढ़ें, बल्कि अपने जीवन में उतारें। यदि उनके तेज का एक कण भी हमने अपने जीवन में धारण कर लिया, तो हम भी समाज और राष्ट्र को आलोकित कर सकते हैं।

कार्यक्रम के आरंभ में पुस्तक का परिचय और प्रस्तावना संपादक भागीरथ चौधरी ने रखी। आभार ज्ञान गंगा प्रकाशन समिति के अध्यक्ष डॉ. मुरलीधर शर्मा ने प्रकट किया। समिति के उपाध्यक्ष जगदीश नारायण शर्मा ने सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया।

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